इस्लामाबाद। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार कोई महिला जज सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीश बनाई गई है। यह ओहदा मिला है जस्टिस आयशा मलिक को। इसके पहले जस्टिस आयशा लाहौर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रह चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति कई महीनों से लटकाई जा रही थी। कभी बार काउंसिल तो कभी ज्यूडिशियरी के अलग-अलग डिपार्टमेंट्स इस मामले में अड़ंगे लगाते रहे। आखिरकार सोमवार को चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान जस्टिस गुलजार अहमद ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। प्रधानमंत्री इमरान खान ने जस्टिस आयशा को शुभकामनाएं और बधाई दी है।
यह बहुत बड़ी कामयाबी
न्यूज एजेंसी से बातचीत में महिला अधिकार कार्यकर्ता निगहत दाद ने कहा- यह सुधारों की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। पाकिस्तान के न्यायिक इतिहास में अब नया अध्याय लिखा जाएगा। वकील और वुमन राइट्स एक्टिविस्ट खादिजा सिद्दीकी ने कहा- जस्टिस आयशा ने तमाम अड़चनों को दूर कर दिया है। इससे दूसरी महिलाओं के लिए भी रास्ते खुल गए हैं।
आसान नहीं था रास्ता
जस्टिस मलिक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं और करीब 20 साल से लाहौर हाईकोर्ट में जज थीं। पिछले साल उन्होंने महिलाओं से भेदभाव के एक कानून को रद्द कर दिया था। मलिक की नियुक्ति इसलिए भी अहम है क्योंकि पाकिस्तान में हमेशा से कट्टरपंथी हावी रहे हैं और इसका असर ज्यूडिशियरी पर भी देखने को मिलता है। रेप और सेक्शुअल हैरेसमेंट के ज्यादातर मामलों आरोपी बरी हो जाते हैं। घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं को सिर्फ 4% मामलों में इंसाफ मिल पाता है।
जस्टिस आयशा के विरोधियों का कहना है कि उन्हें कई पुरुष जजों की सीनियारिटी को नजरअंदाज करके सुप्रीम कोर्ट में लाया गया है। हैरानी की बात यह है कि बार काउंसिल भी उनके साथ नहीं है। पिछले महीने बार काउंसिल ने जस्टिस आयशा की नियुक्ति के विरोध में तमाम कोर्ट ही बंद करवा दिए थे।
संविधान संशोधन जरूरी
पिछले महीने पाकिस्तान के बड़े अखबार ‘द डॉन’ की एक रिपोर्ट में कहा गया था- सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति से संबंधित दो नियम संविधान में हैं। संसद इनमें बदलाव कर सकती है। 175A के तहत नियुक्ति की जाती है जबकि 209 के तहत जजों को हटाया जा सकता है। बार काउंसिल का कहना है कि जब चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान जस्टिस गुलजार अहमद ही रिटायर होने वाले हैं तो वो कैसे किसी जज को नियुक्त कर सकते हैं। 1 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के तमाम जजों के पैनल की मीटिंग होनी है। इसमें जजों की नियुक्ति से संबंधित कुछ और अहम फैसले हो सकते हैं।