अमेरिका में दवाओं की कीमतों में 80% तक कटौती: ट्रंप की ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ नीति का ऐलान
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ नीति के तहत दवाओं की कीमतों में 30% से 80% तक कटौती की घोषणा की। यह नीति अमेरिका में दवाओं की कीमतों को अन्य विकसित देशों के समान स्तर पर लाएगी। फार्मास्युटिकल उद्योग ने इसका विरोध किया, इसे मरीजों और अनुसंधान के लिए हानिकारक बताया।

वाशिंगटन, 12 मई 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को एक ऐतिहासिक कदम की घोषणा की, जिसके तहत अमेरिका में प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की कीमतों को 30% से 80% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। इस नई नीति, जिसे ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) नीति कहा जा रहा है, को लागू करने के लिए ट्रंप सोमवार सुबह 9 बजे एक कार्यकारी आदेश (एग्जीक्यूटिव ऑर्डर) पर हस्ताक्षर करेंगे। इस नीति का उद्देश्य अमेरिका में दवाओं की कीमतों को अन्य विकसित देशों के समान स्तर पर लाना है, जहां दवाएं अक्सर अमेरिका की तुलना में कई गुना सस्ती होती हैं।
‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ नीति क्या है?
‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ नीति के तहत, अमेरिका में दवाओं की कीमतें उन देशों के बराबर की जाएंगी, जो विश्व में सबसे कम कीमत पर दवाएं खरीदते हैं। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर इस नीति की घोषणा करते हुए कहा, “अमेरिका अब उन देशों की तरह ही कीमत चुकाएगा, जो विश्व में सबसे कम कीमत पर दवाएं खरीदते हैं। यह हमारे देश के लिए निष्पक्षता लाएगा और नागरिकों के स्वास्थ्य देखभाल खर्च को अभूतपूर्व स्तर तक कम करेगा।”
इस नीति के तहत, विशेष रूप से मेडिकेयर प्रोग्राम के तहत कुछ दवाओं की कीमतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदर्भित किया जाएगा। मेडिकेयर अमेरिका का एक प्रमुख स्वास्थ्य बीमा प्रोग्राम है, जो मुख्य रूप से वरिष्ठ नागरिकों और कुछ विशेष जरूरतों वाले लोगों को कवर करता है। ट्रंप का दावा है कि इस कदम से न केवल अमेरिकी नागरिकों को सस्ती दवाएं मिलेंगी, बल्कि देश को लंबे समय में खरबों डॉलर की बचत होगी।
फार्मास्युटिकल उद्योग का विरोध
ट्रंप की इस घोषणा के बाद फार्मास्युटिकल उद्योग ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका (PhRMA) के सीईओ स्टीफन उब्ल ने इस नीति को “अमेरिकी मरीजों के लिए हानिकारक” करार दिया। उनका कहना है कि विदेशी कीमतों को आयात करने से मेडिकेयर के लिए अरबों डॉलर की कटौती होगी, लेकिन इससे मरीजों को दवाओं तक पहुंच में सुधार की कोई गारंटी नहीं है। इसके अलावा, उद्योग का तर्क है कि इस नीति से दवा कंपनियों का मुनाफा कम होगा, जिससे नए दवाओं के अनुसंधान और विकास पर असर पड़ सकता है।