बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सवर्ण आयोग को किया मजबूत, आयोग को नए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और मेंबर दिए...

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने सवर्ण आयोग (समान अवसर आयोग) को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने आयोग का पुनर्गठन करते हुए नए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की है। इस फैसले को राज्य में सवर्ण समाज को राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। सरकार के मुताबिक, यह कदम सभी वर्गों को समान अवसर और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की नीति के तहत उठाया गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम से आगामी चुनावों में सवर्ण समुदाय को साधने की रणनीति भी जुड़ी हो सकती है। वहीं, विपक्ष ने इस निर्णय को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह सिर्फ "चुनावी लॉलीपॉप" है।
गौरतलब है कि बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति लंबे समय से सत्ता की धुरी रही है, और अब सवर्ण आयोग को मजबूत कर सरकार ने एक नया संदेश देने की कोशिश की है।
नीतीश कुमार सरकार ने सवर्ण आयोग को मजबूत कर दिया है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने आयोग को नए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और मेंबर दिए हैं। यही नहीं आयोग ने बुधवार को ही एक मीटिंग भी की है, जिसमें सवर्ण समाज में आने वाली जातियों के हालात पर चिंता व्यक्त की गई। नीतीश कुमार सरकार को लगता है कि अति-पिछड़ा, दलित और पिछड़ा की गोलबंदी के बीच कहीं सवर्ण समुदाय न छिटक जाए। ऐसे में उसे साधने के लिए यह उपक्रम किया गया है। भाजपा के समर्थक कहे जाने वाले सवर्ण समुदाय की राजपूत और भूमिहार जैसी जातियां अकसर छिटकती रही हैं। हालांकि ब्राह्मण और कायस्थ भाजपा के पक्ष में एकजुट नजर आए हैं।
ऐसी स्थिति में सवर्णों की पूरी गोलबंदी एनडीए के फेवर में हो, इसके लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। इसी की कड़ी सवर्ण आयोग है। अब यह आयोग आने वाले दिनों में कुछ सिफारिशें भी कर सकता है। इन सिफारिशों में एक यह भी होगा कि गरीब सवर्ण परिवारों के बच्चों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में छूट दी जाए। इसके अलावा यूपीएससी, पीसीएस और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए फ्री कोचिंग की सिफारिश हो सकती है। गरीब सवर्णों के बच्चों को हॉस्टल की सुविधान देने की सिफारिश भी आयोग की तरफ से की जा सकती है।